सन्देश १- मित्रो हमारे जन्म लेते ही हमारे ऊपर 5 ऋण लग जात्ते है, १-मातृ ऋण :- जिस माता ने हमें 9 महीने तक अपनी गर्भ में रखा पाला पोषा सारे रिश्ते तो बाद में बनते है पर माँ बेटे का रिश्ता 9 महीने पहले से ही बन जाता है तो उस माता के प्रति हमारे कुछ कर्तव्य होते है जिनको हमें निभाना पड़ता है इसीलिए माता का स्थान संसार में सबसे ऊँचा होता है 2-पितृ ऋण :- शास्स्त्रो में कहा गया है आत्मा जायते पुत्रः अर्थात पिता ही पुत्र के रूप में जन्म लेता है जिस्सके अंश से हम जन्म लेते है जो अपने कर्तव्य के रूप में हमे पलता है पोषता है इस संसार में जीना सिखाता है चलना सिखाता है उस पिता के प्रति भी हमारे कर्तव्य होते है 3-गुरु ऋण :- जो हमको हमारे लक्ष्य का मार्ग , ईश्वर को प्राप्त करने का मार्ग ,स्वयं को पहचानने का मार्ग दिखता है इस संसार ममे जीने का रास्ता दीखता है उस गुरु के प्रति हमारे कुछ कर्तव्य होते है 4-लोक ऋण :- जिस सामाज में हम जन्म लेते है जिस ससमाज में हम पालते है बढाते है बड़े होते होते है जिस समाज में हम जीते है उस समाज के प्रति हमारे कुछ कर्तव्य होते है 5-मातृभूमि ऋण :- जिस धरती पर हम जन्म लेते है जिस मातृभूमि पर हम जन्म लेते है जिस देश में हमारा जन्म हुआ जिस देश में हम हमारा परिवार , समाज रहता है उस देश ,उस मातृभूमि के प्रति हमारे कुछ कर्तव्य होते हैं हम अपने माता , पिता , गुरु के लिए कुछ कर्म तो करते है पर इस लोक ऋण और मातृभूमि के लिए क्या करते है, इन् पांचो ऋणों में से किन किन ऋणों को चुकाते है , किनके प्रति अपने कर्तव्यो का परिवहन करते है, कर्तव्य तो बहुत है जैसे पति का कर्तव्य, पिता का कर्त्तव्य, पुत्र का कर्त्तव्य, धर्म के प्रति कर्तव्य आदि... इसलिये आइये हम लोग इस समाज कके लिए , इस धर्म के , के लिए , अपनी मातृभूमि के लिए , अपने देश के लिए , भारत माता के के लिए कर्तव्य का पालन करने लिए ,अपने मातृभूमि के प्रति कर्म करने के लिए आइये हम आपका आह्वान करते है आइये हम सब मिलकर अपने सभी कर्तव्यो का पलान करते हुए देश के विकास में , अपने विचारो के विकास में उत्थान करे आगे बढे. आइये भारतीय ज्योतिष संस्थानम आपका आह्वान करता है

सन्देश -2 वर्तमान समय में सम्पूर्ण भारत में एक भ्रान्ति कैंसर की तरह फैल रही है , विभिन्न सम्प्रदायों के प्रतिस्ष्ठित होने के कारण सारा समाज, सत्य से दूर होता जा रहा है उन्ही भ्रांतियों में से एक भ्रान्ति हैं – 1 -वर्तमान समय में विभिन्न सम्प्रदायों में यह भ्रान्ति फैली है की शिव विष्णु अलग – अलग हैं | बैष्णव सम्प्रदाय के लोगों को अगर शिव मंदिर दिख जाता हैं तो उसे पाप मानते है , शैव सम्प्रदाय के लोग विष्णु को महत्वहिन समझते हैं | वैष्णव सम्प्रदाय के कुछ लोग तो शंकराचार्य को राक्षस का अवतार मानते हैं तो वही शैव सम्प्रदाय के लोग नरसिंह भगवान का वध करने वाले शार्दुल अवतार शिव को महत्त्व देते हैं – परन्तु ये भ्रान्ति है, इस भ्रान्ति के कारण ही हमारा हिन्दू समाज सत्य मार्ग से भटक रहा है | वास्तविकता तो ये है – राम ,कृष्ण ,विष्णु , शिव , ब्रह्मा हम जिनको भी मानते हैं | सभी परब्रह्म के ही अलग – अलग स्थानो पर अलग – अलग कपड़ो में आपकी अलग – अलग फोटो शिव और विष्णु में कोई अन्तर नहीं हैं दोनों एक ही हैं – उदाहरण के लिए – दक्ष यज्ञ विध्वश के बाद वीरभद्र ने विष्णु को बांध दिया फिर उनको मारने के लिए त्रिशुल चलाया तो त्रिशूल भगवान विष्णु के पास पंहुचा तो वहा वीरभद्र को भगवान शिव खड़े दिखाई दिए त्रिशूल परिक्रमा करके लौट आया | हमें इसी से समझ लेना चाहिए 2 – धर्मो की विभिन्नता की भ्रान्ति – आज के परिवेश में बहुत सारे लोग धर्मो की भ्रान्ति में भटक रहे हैं | लोगो की भ्रान्ति यह है की – विभिन्न दर्शनों एवं विभिन्न मतों के कारण यह बड़ा है , यह धर्म छोटा है , यह दर्शन बड़ा है , यह दर्शन छोटा है , यह मत सही है , यह मत गलत है | परन्तु यह सिर्फ भ्रान्ति है और भ्रान्ति ही अज्ञान हैं | अज्ञान की परिभाषा बेदान्त सार में श्रीसदानन्द योगी पदाचार्य ने दिया है की अज्ञान में ज्ञान का अभाव नहीं है अज्ञान भाव रूप है त्रिगुणात्मक हैं | रस्सी में सर्प का भान होना ही भ्रान्ति ही अज्ञान हैं | जिस प्रकार से हमारे देश की राजधानी दिल्ली हैं वहा लाल किला हैं और वहा जाने के हजारो रास्ते हैं पर ये जरूरी नहीं है सभी ब्यक्तियो के लिए एक ही रास्ता सरल एवं नजदिक पड़ेगा बल्कि चारो दिशाओं से आने वाले व्यक्तियों के अलग – अलग मार्ग जो उनके गृह स्थान से नजदीक पड़ेगा वही मार्ग चुनेंगे परन्तु आना सबको लाल किला ही है | ठीक उसी प्रकार से ब्रह्म एक ही है और उस तक पहुचने के लिए रास्त्ते अलग – अलग है जो मार्ग जो धर्म जिसकी उपयुक्त पड़ेगा वह वही मार्ग चुनेगा |
आचार्य अम्बिकेश कुमार दूबे अध्यक्ष –भारतीय ज्योतिष संस्थानम ट्रस्ट.